Friday, August 21, 2009

कामिनि कंत सों

कामिनि कंत सों, जामिनि चंद सों, दामिनि पावस-मेघ घटा सों,
कीरति दान सों, सूरति ज्ञान सों, प्रीति बड़ी सनमान महा सों।
‘भूषन’ भूषण सों तरुनी; नलिनी नव पूषण-देव-प्रभा सों;
जाहिर चारिहु ओर जहान लसै हिंदुआन खुमान सिवा सों॥
साजि चतुरंग वीर-रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं;
‘भूषन’ भनत नाद विहद-नगारन के,
नदी-नद मद गब्बरन के रलत हैं।
ऐल-फैल खैल भैल खलक पै गैल-गैल,
गजन कि ठेल पेल सैल उसलत हैं;
तारा-सौ तरनि धूरि-धारा में लगत, जिमि
थारा पर पारा पारावर यों हलत हैं॥
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहन वारी,
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करें कंद मूल भो करें,
तीन बेर खाती सो तीनि बेर खाती हैं।
भूषण सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
विजन डुलाती ते वै विजन डुलाती हैं।
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती है॥

Saturday, August 8, 2009

तव नयनांचे दल हलले गं...

तव नयनांचे दल हलले गं...

तव नयनांचे दल हलले गं
पानावरच्या दवबिंदूपरी
जग सारे डळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं

वारे गळले तारे ढळले
दिग्गज पंचाननसे वळले
गिरि ढासळले, सुर कोसळले
ऋषी मुनी योगी चळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं

ऋतुचक्राचे आस उडाले
आकाशातुन शब्द उडाले
आवर आवर अपुले भाले
मीन जळी तळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं

हृदयी माझ्या चकमक झडली
दो नयनांची किमया घडली
नजर तुझी धरणीला भिडली
पुनरपी जग सावरले गं
तव नयनांचे दल हलले गं


कवी - बा. भ. बोरकर