"अकस्मात यावे, बक मच्छ उचलुन नेतो तैसा घाला घालावा, शिपाईगिरीची शर्थ करावी, प्रसंग पडल्यास माघारे पळुन जावे. खाण्यापिण्याच्या दरकार बाळगीत नाहित. पाऊस, ऊन, थंडि, अंधारी काहि न पाहता घोड्यावरच हरभरे व भाकरी चटणी, कांदे खाऊन धावतात. त्यांस कसे जिंकावे? एक्या मुल्कात फौज आली म्हणोन त्यांजवर रवानगि करावि तो दुसरेकडे जाऊन ठाणी घेतात, मुलुख मारीतात, हे आदमी नव्हत भूतखाना आहे."
- मराठ्यांच्या गनिमी युध्दतंत्राविषयी शत्रुंचा अभिप्राय कसा होता? त्याचे मल्हार रामराव चिटणीस बखरीत केलेले वर्णन.(म.वि.को. खंड ४)
Tuesday, September 15, 2009
सरफ़रोशी की तमन्ना....
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्क़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ज़िस्म भी क्या ज़िस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
- शहिद रामप्रसाद बिस्मिल.
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्क़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ज़िस्म भी क्या ज़िस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
- शहिद रामप्रसाद बिस्मिल.
महाराष्ट्रदर्शन
महाराष्ट्राचा प्रत्येक धोंडा एकेका रोमहर्षक प्रसंगाचा साक्षी. त्याला जर कधी काळीं जिभा फुटल्या, तर तो जे सांगेल ते ऐकुन प्रेते उठतील. कबंधे जिवंत होतील. षंढांच्या अंगी वारे भरेल! असा सांस्कृतिक आणि समरतीर्थांचा महाराष्ट्रात अपूर्व योग घडून आला आहे. स्वातंत्र्यप्रियता ही तर महाराष्ट्राची आंगिक प्रवृत्ती. अंग्रेजांना संपूर्ण भारत जिंकण्यापूर्वी शेवटची लढाई इथल्याच ठेंगण्या काळासर मावळ्यांशी खेळावी लागली. ती युध्दश्री, ती रग, तो आवेश, अजूनही मावळला नाही. कधी मावळेलसे दिसतहि नाही. हा गुण डोंगरावरुन वाहत येणार्या भराट वार्याचा आहे.कृष्णा, कोयना, पवना, भीमेच्या पाण्याचा आहे. तेव्हा महाराष्ट्र श्रीमंत आहे. स्वाभिमानी तर आहेच आहे. कणखर आहे. चिवट आहे. मोडेल पण वाकणार नाही. मित्रांसाठी जीव देणारा आहे. भक्तीभावाने गहिवरणारा आहे. लढताना प्राण तळहाती घेणारा आहे. थोडासा भांडखोरही आहे. थोडीशी हिरवटपणाची झांक आहे. पण किती? चंद्रावरल्या डागाएव्हढी. ज्याने महाराष्ट्रावर लोभ केला,त्याच्या पायतळी आपला जीव अंथरण्यापुरता तो भोळाही आहे. आथित्यशील आहे. किंबहुना तो आहे गिरीशिखरांच्या दैवतासारखा. शंभुमहादेवासारखा. संतापला तर त्रिभुवने पेटवील. संतुष्ट झाला तर कारुण्याची गंगा वाहवील.
- गो.नी.दा.
- गो.नी.दा.
Friday, August 21, 2009
कामिनि कंत सों
कामिनि कंत सों, जामिनि चंद सों, दामिनि पावस-मेघ घटा सों,
कीरति दान सों, सूरति ज्ञान सों, प्रीति बड़ी सनमान महा सों।
‘भूषन’ भूषण सों तरुनी; नलिनी नव पूषण-देव-प्रभा सों;
जाहिर चारिहु ओर जहान लसै हिंदुआन खुमान सिवा सों॥
साजि चतुरंग वीर-रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं;
‘भूषन’ भनत नाद विहद-नगारन के,
नदी-नद मद गब्बरन के रलत हैं।
ऐल-फैल खैल भैल खलक पै गैल-गैल,
गजन कि ठेल पेल सैल उसलत हैं;
तारा-सौ तरनि धूरि-धारा में लगत, जिमि
थारा पर पारा पारावर यों हलत हैं॥
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहन वारी,
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करें कंद मूल भो करें,
तीन बेर खाती सो तीनि बेर खाती हैं।
भूषण सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
विजन डुलाती ते वै विजन डुलाती हैं।
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती है॥
कीरति दान सों, सूरति ज्ञान सों, प्रीति बड़ी सनमान महा सों।
‘भूषन’ भूषण सों तरुनी; नलिनी नव पूषण-देव-प्रभा सों;
जाहिर चारिहु ओर जहान लसै हिंदुआन खुमान सिवा सों॥
साजि चतुरंग वीर-रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं;
‘भूषन’ भनत नाद विहद-नगारन के,
नदी-नद मद गब्बरन के रलत हैं।
ऐल-फैल खैल भैल खलक पै गैल-गैल,
गजन कि ठेल पेल सैल उसलत हैं;
तारा-सौ तरनि धूरि-धारा में लगत, जिमि
थारा पर पारा पारावर यों हलत हैं॥
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहन वारी,
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करें कंद मूल भो करें,
तीन बेर खाती सो तीनि बेर खाती हैं।
भूषण सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
विजन डुलाती ते वै विजन डुलाती हैं।
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती है॥
Saturday, August 8, 2009
तव नयनांचे दल हलले गं...
तव नयनांचे दल हलले गं...
तव नयनांचे दल हलले गं
पानावरच्या दवबिंदूपरी
जग सारे डळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
वारे गळले तारे ढळले
दिग्गज पंचाननसे वळले
गिरि ढासळले, सुर कोसळले
ऋषी मुनी योगी चळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
ऋतुचक्राचे आस उडाले
आकाशातुन शब्द उडाले
आवर आवर अपुले भाले
मीन जळी तळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
हृदयी माझ्या चकमक झडली
दो नयनांची किमया घडली
नजर तुझी धरणीला भिडली
पुनरपी जग सावरले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
कवी - बा. भ. बोरकर
तव नयनांचे दल हलले गं
पानावरच्या दवबिंदूपरी
जग सारे डळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
वारे गळले तारे ढळले
दिग्गज पंचाननसे वळले
गिरि ढासळले, सुर कोसळले
ऋषी मुनी योगी चळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
ऋतुचक्राचे आस उडाले
आकाशातुन शब्द उडाले
आवर आवर अपुले भाले
मीन जळी तळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
हृदयी माझ्या चकमक झडली
दो नयनांची किमया घडली
नजर तुझी धरणीला भिडली
पुनरपी जग सावरले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
कवी - बा. भ. बोरकर
Wednesday, March 11, 2009
कासी की कला जाती
राखी हिन्दुवानी, हिन्दुवानको तिलक राख्यो |
अस्मृती पुराण राखे वेदविधि सुनी मैं ||
राखी रजपुती , रजधानी राखी राजन की |
धरामे धर्म राख्यो , राख्यो गुन गुनी मैं ||
भूषण सुकवि , जीती हद्द मरह्टट्न की |
देस देस कीर्ति , बरवानी तव सुनी मैं ||
साही के सपूत , सिवराज समशेर तेरी |
दिल्ली दल दाबी कै, दिवाल राखी दुनी मैं ||
वेद राखे विदित , पुराण राखे सारयुत |
रामनाम राख्यो , अति रसना सुघर मैं ||
हिन्दुन की चोटी, रोटी राखी है सिपहीन की |
कान्दे मैं जनेऊ राखे , माला राखी गर मैं ||
मिडी राखे मुगल , मरोरी राखे पातसाह |
बैरीपिसी राखे , बरदान राख्यो कर मैं ||
राजन की हद्द राखी , तेगबल सिवराज |
देव राखे देवल , स्वधर्म राख्यो घर मैं ||
देवल गिराविते , फिराविते निसान अली |
ऐसे डूबे रावराने , सबी गए लबकी ||
गौर गणपती आप , औरनको देत ताप |
आपनी ही बार सब , मारी गये दबकी ||
पीरा पैगंबर , दिगंबर दिखाई देत |
सिद्ध की सिदधाई गई , रही बात रब की ||
कासी की कला जाती, मथुरा मस्जिद होती |
सिवाजी न होते तो , सुन्नत होती सबकी ||
अस्मृती पुराण राखे वेदविधि सुनी मैं ||
राखी रजपुती , रजधानी राखी राजन की |
धरामे धर्म राख्यो , राख्यो गुन गुनी मैं ||
भूषण सुकवि , जीती हद्द मरह्टट्न की |
देस देस कीर्ति , बरवानी तव सुनी मैं ||
साही के सपूत , सिवराज समशेर तेरी |
दिल्ली दल दाबी कै, दिवाल राखी दुनी मैं ||
वेद राखे विदित , पुराण राखे सारयुत |
रामनाम राख्यो , अति रसना सुघर मैं ||
हिन्दुन की चोटी, रोटी राखी है सिपहीन की |
कान्दे मैं जनेऊ राखे , माला राखी गर मैं ||
मिडी राखे मुगल , मरोरी राखे पातसाह |
बैरीपिसी राखे , बरदान राख्यो कर मैं ||
राजन की हद्द राखी , तेगबल सिवराज |
देव राखे देवल , स्वधर्म राख्यो घर मैं ||
देवल गिराविते , फिराविते निसान अली |
ऐसे डूबे रावराने , सबी गए लबकी ||
गौर गणपती आप , औरनको देत ताप |
आपनी ही बार सब , मारी गये दबकी ||
पीरा पैगंबर , दिगंबर दिखाई देत |
सिद्ध की सिदधाई गई , रही बात रब की ||
कासी की कला जाती, मथुरा मस्जिद होती |
सिवाजी न होते तो , सुन्नत होती सबकी ||
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