"अकस्मात यावे, बक मच्छ उचलुन नेतो तैसा घाला घालावा, शिपाईगिरीची शर्थ करावी, प्रसंग पडल्यास माघारे पळुन जावे. खाण्यापिण्याच्या दरकार बाळगीत नाहित. पाऊस, ऊन, थंडि, अंधारी काहि न पाहता घोड्यावरच हरभरे व भाकरी चटणी, कांदे खाऊन धावतात. त्यांस कसे जिंकावे? एक्या मुल्कात फौज आली म्हणोन त्यांजवर रवानगि करावि तो दुसरेकडे जाऊन ठाणी घेतात, मुलुख मारीतात, हे आदमी नव्हत भूतखाना आहे."
- मराठ्यांच्या गनिमी युध्दतंत्राविषयी शत्रुंचा अभिप्राय कसा होता? त्याचे मल्हार रामराव चिटणीस बखरीत केलेले वर्णन.(म.वि.को. खंड ४)
Tuesday, September 15, 2009
सरफ़रोशी की तमन्ना....
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्क़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ज़िस्म भी क्या ज़िस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
- शहिद रामप्रसाद बिस्मिल.
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्क़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ज़िस्म भी क्या ज़िस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
- शहिद रामप्रसाद बिस्मिल.
महाराष्ट्रदर्शन
महाराष्ट्राचा प्रत्येक धोंडा एकेका रोमहर्षक प्रसंगाचा साक्षी. त्याला जर कधी काळीं जिभा फुटल्या, तर तो जे सांगेल ते ऐकुन प्रेते उठतील. कबंधे जिवंत होतील. षंढांच्या अंगी वारे भरेल! असा सांस्कृतिक आणि समरतीर्थांचा महाराष्ट्रात अपूर्व योग घडून आला आहे. स्वातंत्र्यप्रियता ही तर महाराष्ट्राची आंगिक प्रवृत्ती. अंग्रेजांना संपूर्ण भारत जिंकण्यापूर्वी शेवटची लढाई इथल्याच ठेंगण्या काळासर मावळ्यांशी खेळावी लागली. ती युध्दश्री, ती रग, तो आवेश, अजूनही मावळला नाही. कधी मावळेलसे दिसतहि नाही. हा गुण डोंगरावरुन वाहत येणार्या भराट वार्याचा आहे.कृष्णा, कोयना, पवना, भीमेच्या पाण्याचा आहे. तेव्हा महाराष्ट्र श्रीमंत आहे. स्वाभिमानी तर आहेच आहे. कणखर आहे. चिवट आहे. मोडेल पण वाकणार नाही. मित्रांसाठी जीव देणारा आहे. भक्तीभावाने गहिवरणारा आहे. लढताना प्राण तळहाती घेणारा आहे. थोडासा भांडखोरही आहे. थोडीशी हिरवटपणाची झांक आहे. पण किती? चंद्रावरल्या डागाएव्हढी. ज्याने महाराष्ट्रावर लोभ केला,त्याच्या पायतळी आपला जीव अंथरण्यापुरता तो भोळाही आहे. आथित्यशील आहे. किंबहुना तो आहे गिरीशिखरांच्या दैवतासारखा. शंभुमहादेवासारखा. संतापला तर त्रिभुवने पेटवील. संतुष्ट झाला तर कारुण्याची गंगा वाहवील.
- गो.नी.दा.
- गो.नी.दा.
Friday, August 21, 2009
कामिनि कंत सों
कामिनि कंत सों, जामिनि चंद सों, दामिनि पावस-मेघ घटा सों,
कीरति दान सों, सूरति ज्ञान सों, प्रीति बड़ी सनमान महा सों।
‘भूषन’ भूषण सों तरुनी; नलिनी नव पूषण-देव-प्रभा सों;
जाहिर चारिहु ओर जहान लसै हिंदुआन खुमान सिवा सों॥
साजि चतुरंग वीर-रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं;
‘भूषन’ भनत नाद विहद-नगारन के,
नदी-नद मद गब्बरन के रलत हैं।
ऐल-फैल खैल भैल खलक पै गैल-गैल,
गजन कि ठेल पेल सैल उसलत हैं;
तारा-सौ तरनि धूरि-धारा में लगत, जिमि
थारा पर पारा पारावर यों हलत हैं॥
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहन वारी,
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करें कंद मूल भो करें,
तीन बेर खाती सो तीनि बेर खाती हैं।
भूषण सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
विजन डुलाती ते वै विजन डुलाती हैं।
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती है॥
कीरति दान सों, सूरति ज्ञान सों, प्रीति बड़ी सनमान महा सों।
‘भूषन’ भूषण सों तरुनी; नलिनी नव पूषण-देव-प्रभा सों;
जाहिर चारिहु ओर जहान लसै हिंदुआन खुमान सिवा सों॥
साजि चतुरंग वीर-रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं;
‘भूषन’ भनत नाद विहद-नगारन के,
नदी-नद मद गब्बरन के रलत हैं।
ऐल-फैल खैल भैल खलक पै गैल-गैल,
गजन कि ठेल पेल सैल उसलत हैं;
तारा-सौ तरनि धूरि-धारा में लगत, जिमि
थारा पर पारा पारावर यों हलत हैं॥
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहन वारी,
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करें कंद मूल भो करें,
तीन बेर खाती सो तीनि बेर खाती हैं।
भूषण सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
विजन डुलाती ते वै विजन डुलाती हैं।
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती है॥
Saturday, August 8, 2009
तव नयनांचे दल हलले गं...
तव नयनांचे दल हलले गं...
तव नयनांचे दल हलले गं
पानावरच्या दवबिंदूपरी
जग सारे डळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
वारे गळले तारे ढळले
दिग्गज पंचाननसे वळले
गिरि ढासळले, सुर कोसळले
ऋषी मुनी योगी चळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
ऋतुचक्राचे आस उडाले
आकाशातुन शब्द उडाले
आवर आवर अपुले भाले
मीन जळी तळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
हृदयी माझ्या चकमक झडली
दो नयनांची किमया घडली
नजर तुझी धरणीला भिडली
पुनरपी जग सावरले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
कवी - बा. भ. बोरकर
तव नयनांचे दल हलले गं
पानावरच्या दवबिंदूपरी
जग सारे डळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
वारे गळले तारे ढळले
दिग्गज पंचाननसे वळले
गिरि ढासळले, सुर कोसळले
ऋषी मुनी योगी चळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
ऋतुचक्राचे आस उडाले
आकाशातुन शब्द उडाले
आवर आवर अपुले भाले
मीन जळी तळमळले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
हृदयी माझ्या चकमक झडली
दो नयनांची किमया घडली
नजर तुझी धरणीला भिडली
पुनरपी जग सावरले गं
तव नयनांचे दल हलले गं
कवी - बा. भ. बोरकर
Wednesday, March 11, 2009
कासी की कला जाती
राखी हिन्दुवानी, हिन्दुवानको तिलक राख्यो |
अस्मृती पुराण राखे वेदविधि सुनी मैं ||
राखी रजपुती , रजधानी राखी राजन की |
धरामे धर्म राख्यो , राख्यो गुन गुनी मैं ||
भूषण सुकवि , जीती हद्द मरह्टट्न की |
देस देस कीर्ति , बरवानी तव सुनी मैं ||
साही के सपूत , सिवराज समशेर तेरी |
दिल्ली दल दाबी कै, दिवाल राखी दुनी मैं ||
वेद राखे विदित , पुराण राखे सारयुत |
रामनाम राख्यो , अति रसना सुघर मैं ||
हिन्दुन की चोटी, रोटी राखी है सिपहीन की |
कान्दे मैं जनेऊ राखे , माला राखी गर मैं ||
मिडी राखे मुगल , मरोरी राखे पातसाह |
बैरीपिसी राखे , बरदान राख्यो कर मैं ||
राजन की हद्द राखी , तेगबल सिवराज |
देव राखे देवल , स्वधर्म राख्यो घर मैं ||
देवल गिराविते , फिराविते निसान अली |
ऐसे डूबे रावराने , सबी गए लबकी ||
गौर गणपती आप , औरनको देत ताप |
आपनी ही बार सब , मारी गये दबकी ||
पीरा पैगंबर , दिगंबर दिखाई देत |
सिद्ध की सिदधाई गई , रही बात रब की ||
कासी की कला जाती, मथुरा मस्जिद होती |
सिवाजी न होते तो , सुन्नत होती सबकी ||
अस्मृती पुराण राखे वेदविधि सुनी मैं ||
राखी रजपुती , रजधानी राखी राजन की |
धरामे धर्म राख्यो , राख्यो गुन गुनी मैं ||
भूषण सुकवि , जीती हद्द मरह्टट्न की |
देस देस कीर्ति , बरवानी तव सुनी मैं ||
साही के सपूत , सिवराज समशेर तेरी |
दिल्ली दल दाबी कै, दिवाल राखी दुनी मैं ||
वेद राखे विदित , पुराण राखे सारयुत |
रामनाम राख्यो , अति रसना सुघर मैं ||
हिन्दुन की चोटी, रोटी राखी है सिपहीन की |
कान्दे मैं जनेऊ राखे , माला राखी गर मैं ||
मिडी राखे मुगल , मरोरी राखे पातसाह |
बैरीपिसी राखे , बरदान राख्यो कर मैं ||
राजन की हद्द राखी , तेगबल सिवराज |
देव राखे देवल , स्वधर्म राख्यो घर मैं ||
देवल गिराविते , फिराविते निसान अली |
ऐसे डूबे रावराने , सबी गए लबकी ||
गौर गणपती आप , औरनको देत ताप |
आपनी ही बार सब , मारी गये दबकी ||
पीरा पैगंबर , दिगंबर दिखाई देत |
सिद्ध की सिदधाई गई , रही बात रब की ||
कासी की कला जाती, मथुरा मस्जिद होती |
सिवाजी न होते तो , सुन्नत होती सबकी ||
Sunday, June 1, 2008
कविराज भूषणकृत शिवस्तुती
१)
इंद्र जिमी जम्भ पर बाड्व सुअम्ब पर
रावण सदम्भ पर रघुकुलराज है ||१||
पौन बरिवाह पर | संभु रतिनाह पर |
ज्यो सहसबाह पर | राम द्विजराज है ||२||
दावा द्रुम दंड पर | चिता मृग झुंड पर |
भूषण बितुंड पर | जैसे मृगराज है ||३||
तेजतमअंस पर | कान्ह जिमी कंस पर |
त्यों म्लेंछ बंस पर| सेर सिवराज है ||४||
-कविराज भूषण
(जंभासुरला जसा इंद्र , समुद्राला जसा वाडवाग्नी,गर्विष्ठ रावणाला ज्याप्रमाणे प्रभुराम, मेघाला ज्याप्रमाणे वादळ,मदनाला जसे शिव शंकर, सहस्रार्जुनाला ज्याप्रमाणे परशुराम,वृक्षाना ज्याप्रमाणे वणवा, हरिणांना जसा चीत्ता,अंधाराला जसा प्रकाश, कंसाला ज्याप्रमाणे श्रीकृष्ण,त्याचप्रमाणे नरसिंह असणारे शिवराय म्लेंच्छांचा नाश करतात)
२)
चढत तुरंग चतुरंग साजी सिवराज,
चढत प्रताप दिन , दिन अती अंगमे।
भुषण चढत , मरहट्टन के चित्तचाह
खग्ग खुली चढतं है, अरिनके अंग मै।
भौसिला के हात, गडकोट है चढतं अरी,
जोट है चढतं, एक मेरूगिरी श्रींगमै।
तुरकान गन व्योम, यान हे चढतं बीनू,
मान है चढतं बद, रंग अवरंग मै।
(चतुरंग सैन्य सज्ज करून शिवराय घोड्यावर स्वार होताच त्यांचा प्रताप दिवसेंदिवस समरांगणात वाढतो आहे.भुषण म्हणतो इकडे मराठ्यांच्या मनातला उत्साहही वाढत आहे तर तिकडे उपसलेल्या तलवारी शत्रूच्या छातीत घुसत आहेत. भोसल्याच्या हाती एकामागून एक असे किल्ले येऊ लागले आहेत तर तिकडे शत्रूच्या टोळया एकत्र होऊन मेरू पर्वताच्या शिखरांवर चढू लागल्या आहेत. तुर्कांचे समुदाय युद्धात मरण मिळाल्यामुळे विमानत बसून आकाशामार्गे जात आहेत तर तिकडे अवसान गळाल्यामुळे औरंगजेब निस्तेज होत चालला आहे.)
३)
ज्यापर साही तनै सिवराज,
सुरेसकी ऎसी सभा सुभासाजे।
यो कवी भुषन जंपत है,
लकी संपती को अलकापती लाजे।
ज्यामदी तिनहू लोकको दिपती,
ऐसो बढो गडराज विराजे।
वार पतालसी माची मही,
अमरावती की छबी ऊपर छाजे।
(या रायगडावर शहाजी पुत्र शिवाजीची सभा इंद्र सभेप्रमाणे शोभते. भुषण म्हणतो इथली संपत्ती पाहून प्रत्यक्ष कुबेरही लाजू लागला आहे. हा किल्ला एवढा प्रचंड व विशाल आहे की यात तिन्ही लोकीच वैभव साठवलेलं आहे. किल्ल्याखालील भूभाग जलमय पाताळाप्रमाणे तर माची पृथ्वीप्रमाणे आणि वरील प्रदेश इंद्रपुरीप्रमाणे शोभतो आहे.)
४)
मोरन जाहूँ की जाहूँ कुमाऊँ की,
सिरीनगरेही कबित्त बनाऐ।
बांधव जाहूँ की जाहूँ अमेरकी,
जोधापूरेही चित्तोरही धाये।
जाहूँ कुतुब्बकी ए दिलपेकी,
दिल्ली सहू पेकी न जाहूँ बुलाए।
भुषन गाय फिरो महिमे,
बनीही चितचाह सिवाही राझाये।
(मोरन, कुमाऊँ, श्रीनगर, बांधवगड, अमेर,
जोधपूर, चित्तोड, गोवळकोंडा,दिल्ली इतकी सगळी गावे फिरलो पण माझ चित्त फ़क्त शिवरायांनीच रिझवलं.)
५)
साजी चतुरंग बीर,
रंग मे तुरंग चडी,
सरजा शिवाजी,
जंग जीतन चलत है।
भूषण भनद नाद,
बिहद नगार न केन दिनी ,
नद मद गैब रण,
रण के रलत है।
ऐल फैल खैल भैल,
खलक मे गैल गैल,
गजन की ठैल पैल,
सैल उसलत है।
तारा सो तरण धुरी,
धारा मे लगत जिमी,
थार पर पारा,
पारा वारा यो हलत है।
(येथे भुषणांनी शिवरायांच्या युद्ध साजाचे वर्णन केले आहे. ते म्हणतात चतुरंग सेना सजवून वीर वेष परिधान करून घोड्यावरून सरजा शिवाजी युद्ध जिंकायला निघालेत.नगारे वाजवून युद्ध चालू झाले आहे. इकडे तिकडे चहूकडे हत्तींच्या चालीमुळे प्रचंड धूळ उसळलेली आहे. यामुळे आकाशातील तारे झाकोळले गेले आहेत भांड्यातील पाय्राप्रमाणे पृथ्वी आंदोळत आहे.)
६)
पैज प्रतिपाल भुमी भारको हमाल,
चहु चक्कको अमाल भयो दंडक जहानको।
साहिन की साल भयो, ज्वाल को जवाल भयो,
हर को कृपाल भयो, हर के विधान को।
वीर रस ख्याल सिवराज भू-अपाल तेरो,
हाथके बिसाल भयो भुषन बखानको।
तेरो तरवार भयो, दख्खनकी ढाल भयो,
हिंदुकी दीवार भयो, काल तुरकानको।
(शिवराज भूपाल - प्रतिज्ञा पुर्णत्वास पोचवणारा,
भुमीभार शिरावर घेणारा ,
चहु दिशांच्या राज्यांवर अंमल गाजवणारा ,
जगतास शासन{शिक्षा} करणारा,
तसेच बादशहास शल्ल्याप्रमाणे जाचणारा,
प्रजेची पीडा हरण करणारा,
आणि नरमुंडाला अर्पण करण्याच्या विधीने
महादेवावर कृपा करणारा असा झाला.
वीररस प्रिय अशा शिवरायांच्या विशाल
भूजांचे कोण वर्णन करू शकेल ?
(जय स्वतः शक्ती संपंन्न असून इतरांनाही शक्ती देणाय्रा आहेत)
भूषण म्हणतो तुझी तरवार दख्खनला ढालीप्रमाणे
व हिंदुंचे भिंतीप्रमाणे रक्षण करणारी झाली असून
तुर्कांना [इस्लामला] मात्र प्रत्यक्ष काळ झाली आहे.)
७)
अलंकार - लाटानुप्रास / क्षेकानुप्रास
छंद - अमृतध्वनी
दिल्लीय दल दबाईके,
सिव सरजा निरसंक,
लुटी लियो सुरती शहर,
बंक करी अति डंक।
बंक करी अति डंक करी
अत संक कुलि खल
सोच च्चकित भरोच्च च्चलीय
विमोच्चच्च खजल।
टठ्ठ ठ्ठई मन
कठ्ठ ठेके सई
रठ्ठ ठ्ठिल्लीय
रद्द द्दिसी दिसी
भद्द द्दभी भयी
रद्द द्दिल्लीय।
(सरजा शिवाजीने निर्भयपणे दिल्लीच्या सैन्याचे पारिपत्य करून आणि डंका वाजवून सूरत शहर लुटले. अशाप्रकारे डंका वाजवल्याने बिचाय्रा शत्रुंची फारच गाळण उडाली ते आश्चर्यचकित आणि चिंताग्रस्त होऊन नेत्रातून अश्रु वर्षाव करत भडोच शहराकडे पळाले. वारंवार घोकून त्यांनी निश्चयपूर्वक भडोचकडे पळण्याचा विचार ठरवला त्यामुळे दिल्ली दाबून बसली आणि चहूकडे तिचा अपमान झाला.)
८)
अलंकार - लाटानुप्रास / क्षेकानुप्रास
छंद - अमृतध्वनी
गतबल खान दलेर हुव
खान बहाद्दूर मुद्ध
सिव सरजा सल्हेरी डिडग,
क्रुद्ध धरी के युद्ध !
क्रुद्ध धरी के युद्ध करी
अरी अद्ध धरी धरी
मंड्ड ड्डरीतहू,
रुंड्ड ड्डकरत,
डुंडु डिड्गभरी !
खेदी द्दर भर,
छेदी दय्कारी,
मेदी द्दधी दल,
जंग्ग ग्गती सुनी,
रंग्ग गली,
अवरंग गतबल !
- कविराज भुषण
(सरजा शिवाजीने साल्हेर किल्ल्याजवळ जेव्हा रागारागाने युद्ध केले तेव्हा दिलेर खान स्तंभित आणि हतबल झाला.या युद्धात शत्रूकडील वीरांचा फडशा पडला तेव्हा शिरावेगळी झालेली धडं डरकाळया फोडू लागली आणि कदंभ इकादूं तिकडे पळू लागले. शत्रु सैन्याला मोर्चातून हूसकावून कापून काढले. त्यांचा मेद दह्याप्रमाणे घूसळला. या युद्धात झालेली दुर्गती औरंगजेबाने जेव्हा ऐकली तेव्हा तो निस्तेज झाला आणि त्याचं अवसान गळाले.)
९)
प्रेतिनी पिशाचर निशाचरी निशाचरी हू,
मिली मिली आपसमे गावत बधाई है।
भैरभूत प्रेतभूरी भूदर भयंकर से,
जुत्तजुत्त जोगनी जमाती जूरी आई है।
किलकी किलकी कै कुतूहल करती काली,
डिमक डिमक डमरू दिगंबर बजाई है।
सिवा पूछे सिवको समाजू आजू कहा चली,
काहू पे सिवा नरेश भृकुटी चढाई है।
(प्रेते, पिशाच्चे, निशाचर हे सगळे एकत्र जमून आनंदाने एकमेकांचे अभिनंदन करत जात आहेत. भैरव, भुतेखेते,६४ योगीनी यांच्या झुंडी जमू लागल्या आहेत. कालीसुद्धा किलकिल करीत वावरत आहे. शिव आनंदाने डमरू वाजवत आहेत. हे सर्व पाहून पार्वती महादेवास विचारत आहे की ,"आपले हे गण कुठं चालले आहेत ? आज शिवाजी राजाची वक्रदृष्टी कुणाकडे वळली आहे ? म्हणजे आज तिथे कत्तल होणार आणि शिवाजीच्या शत्रूंच्या प्रेतांवर या शिवगणांना ताव मारायला मिळणार आणि म्हणून आनंद व्यक्त करत ही सगळी चालली आहेत")
१०)
कुंद कहा, पयवृंद कहा
अरुचंद कहा, सरजा जस आगे?
भूषण भानु कृसानु कहाऽब
खुमन प्रताप महीतल पागे?
राम कहा, द्विजराम कहा,
बलराम कहा, रण मै अनुरागे?
बाज कहा, मृगराज कहा,
अतिसाहस मै सिवराज के आगे?
(कुंद, दूध, चंद्र यांची शुभ्रता शिवरायांच्या यशासमोर काय आहे ?
पृथ्वीवर पसरलेल्या शिवरायांच्या प्रखर प्रतापपुढे सूर्य अग्नी यांच्या तेजाचा काय पाड ?
युद्धप्रियतेमध्ये राम,परशुराम,बलराम हे देखील शिवरायांच्या मागे आहेत.
आणि साहस पाहिले असता बहिरी ससाणा व सिंह हे शिवरायांच्या पुढे तुच्छ आहेत.)
११)
शक्र जिमि सैल पर,
अर्क तमफैलपर,
बिघन की रैलपर,
लंबोदर देखीये !
राम दसकंधपर,
भीम जरासंधपर,
भूषण ज्यों सिंधुपर,
कुंभज विसेखिये !
हर ज्यों अनंगपर,
गरुड़ ज्यों भुजंगपर,
कौरव के अंग पर,
पारथ ज्यों पेखीये !
बाज ज्यों बिहंग पर,
सिंह ज्यों मतंग पर,
म्लेंच्छ चतुरंगपर,
शिवराज देखिये !!
शिवराज देखिये !! शिवराज देखिये !!
शिवराज देखिये !! शिवराज देखिये !!
- कविराज भुषण
{ज्याप्रमाणे इंद्र पर्वताचा , सूर्य अंधःकाराचा आणि विघ्नहर्ता गणराज विघ्नांचा नाश करतो
ज्याप्रमाणे प्रभु रामाने रवानाचा, भिमाने जरासंधाचा नाश केला, अगस्ति ऋषींनी समुद्राचा घोट घेतला
ज्याप्रमाणे महादेव मदनास जाळून भस्मसात करतात, गरुड़ सापांचा नाश करतो, एकटा अर्जुन कौरावांच्या वरचढ ठरतो
ज्याप्रमाणे पक्षी बहिरी ससाण्यास , हत्ती सिंहास पाहून भयभीत होतात
तद्वतच इस्लामी चतुरंग सैन्य शिवारयांच्या पराक्रमासमोर भयभीत होते.)
इंद्र जिमी जम्भ पर बाड्व सुअम्ब पर
रावण सदम्भ पर रघुकुलराज है ||१||
पौन बरिवाह पर | संभु रतिनाह पर |
ज्यो सहसबाह पर | राम द्विजराज है ||२||
दावा द्रुम दंड पर | चिता मृग झुंड पर |
भूषण बितुंड पर | जैसे मृगराज है ||३||
तेजतमअंस पर | कान्ह जिमी कंस पर |
त्यों म्लेंछ बंस पर| सेर सिवराज है ||४||
-कविराज भूषण
(जंभासुरला जसा इंद्र , समुद्राला जसा वाडवाग्नी,गर्विष्ठ रावणाला ज्याप्रमाणे प्रभुराम, मेघाला ज्याप्रमाणे वादळ,मदनाला जसे शिव शंकर, सहस्रार्जुनाला ज्याप्रमाणे परशुराम,वृक्षाना ज्याप्रमाणे वणवा, हरिणांना जसा चीत्ता,अंधाराला जसा प्रकाश, कंसाला ज्याप्रमाणे श्रीकृष्ण,त्याचप्रमाणे नरसिंह असणारे शिवराय म्लेंच्छांचा नाश करतात)
२)
चढत तुरंग चतुरंग साजी सिवराज,
चढत प्रताप दिन , दिन अती अंगमे।
भुषण चढत , मरहट्टन के चित्तचाह
खग्ग खुली चढतं है, अरिनके अंग मै।
भौसिला के हात, गडकोट है चढतं अरी,
जोट है चढतं, एक मेरूगिरी श्रींगमै।
तुरकान गन व्योम, यान हे चढतं बीनू,
मान है चढतं बद, रंग अवरंग मै।
(चतुरंग सैन्य सज्ज करून शिवराय घोड्यावर स्वार होताच त्यांचा प्रताप दिवसेंदिवस समरांगणात वाढतो आहे.भुषण म्हणतो इकडे मराठ्यांच्या मनातला उत्साहही वाढत आहे तर तिकडे उपसलेल्या तलवारी शत्रूच्या छातीत घुसत आहेत. भोसल्याच्या हाती एकामागून एक असे किल्ले येऊ लागले आहेत तर तिकडे शत्रूच्या टोळया एकत्र होऊन मेरू पर्वताच्या शिखरांवर चढू लागल्या आहेत. तुर्कांचे समुदाय युद्धात मरण मिळाल्यामुळे विमानत बसून आकाशामार्गे जात आहेत तर तिकडे अवसान गळाल्यामुळे औरंगजेब निस्तेज होत चालला आहे.)
३)
ज्यापर साही तनै सिवराज,
सुरेसकी ऎसी सभा सुभासाजे।
यो कवी भुषन जंपत है,
लकी संपती को अलकापती लाजे।
ज्यामदी तिनहू लोकको दिपती,
ऐसो बढो गडराज विराजे।
वार पतालसी माची मही,
अमरावती की छबी ऊपर छाजे।
(या रायगडावर शहाजी पुत्र शिवाजीची सभा इंद्र सभेप्रमाणे शोभते. भुषण म्हणतो इथली संपत्ती पाहून प्रत्यक्ष कुबेरही लाजू लागला आहे. हा किल्ला एवढा प्रचंड व विशाल आहे की यात तिन्ही लोकीच वैभव साठवलेलं आहे. किल्ल्याखालील भूभाग जलमय पाताळाप्रमाणे तर माची पृथ्वीप्रमाणे आणि वरील प्रदेश इंद्रपुरीप्रमाणे शोभतो आहे.)
४)
मोरन जाहूँ की जाहूँ कुमाऊँ की,
सिरीनगरेही कबित्त बनाऐ।
बांधव जाहूँ की जाहूँ अमेरकी,
जोधापूरेही चित्तोरही धाये।
जाहूँ कुतुब्बकी ए दिलपेकी,
दिल्ली सहू पेकी न जाहूँ बुलाए।
भुषन गाय फिरो महिमे,
बनीही चितचाह सिवाही राझाये।
(मोरन, कुमाऊँ, श्रीनगर, बांधवगड, अमेर,
जोधपूर, चित्तोड, गोवळकोंडा,दिल्ली इतकी सगळी गावे फिरलो पण माझ चित्त फ़क्त शिवरायांनीच रिझवलं.)
५)
साजी चतुरंग बीर,
रंग मे तुरंग चडी,
सरजा शिवाजी,
जंग जीतन चलत है।
भूषण भनद नाद,
बिहद नगार न केन दिनी ,
नद मद गैब रण,
रण के रलत है।
ऐल फैल खैल भैल,
खलक मे गैल गैल,
गजन की ठैल पैल,
सैल उसलत है।
तारा सो तरण धुरी,
धारा मे लगत जिमी,
थार पर पारा,
पारा वारा यो हलत है।
(येथे भुषणांनी शिवरायांच्या युद्ध साजाचे वर्णन केले आहे. ते म्हणतात चतुरंग सेना सजवून वीर वेष परिधान करून घोड्यावरून सरजा शिवाजी युद्ध जिंकायला निघालेत.नगारे वाजवून युद्ध चालू झाले आहे. इकडे तिकडे चहूकडे हत्तींच्या चालीमुळे प्रचंड धूळ उसळलेली आहे. यामुळे आकाशातील तारे झाकोळले गेले आहेत भांड्यातील पाय्राप्रमाणे पृथ्वी आंदोळत आहे.)
६)
पैज प्रतिपाल भुमी भारको हमाल,
चहु चक्कको अमाल भयो दंडक जहानको।
साहिन की साल भयो, ज्वाल को जवाल भयो,
हर को कृपाल भयो, हर के विधान को।
वीर रस ख्याल सिवराज भू-अपाल तेरो,
हाथके बिसाल भयो भुषन बखानको।
तेरो तरवार भयो, दख्खनकी ढाल भयो,
हिंदुकी दीवार भयो, काल तुरकानको।
(शिवराज भूपाल - प्रतिज्ञा पुर्णत्वास पोचवणारा,
भुमीभार शिरावर घेणारा ,
चहु दिशांच्या राज्यांवर अंमल गाजवणारा ,
जगतास शासन{शिक्षा} करणारा,
तसेच बादशहास शल्ल्याप्रमाणे जाचणारा,
प्रजेची पीडा हरण करणारा,
आणि नरमुंडाला अर्पण करण्याच्या विधीने
महादेवावर कृपा करणारा असा झाला.
वीररस प्रिय अशा शिवरायांच्या विशाल
भूजांचे कोण वर्णन करू शकेल ?
(जय स्वतः शक्ती संपंन्न असून इतरांनाही शक्ती देणाय्रा आहेत)
भूषण म्हणतो तुझी तरवार दख्खनला ढालीप्रमाणे
व हिंदुंचे भिंतीप्रमाणे रक्षण करणारी झाली असून
तुर्कांना [इस्लामला] मात्र प्रत्यक्ष काळ झाली आहे.)
७)
अलंकार - लाटानुप्रास / क्षेकानुप्रास
छंद - अमृतध्वनी
दिल्लीय दल दबाईके,
सिव सरजा निरसंक,
लुटी लियो सुरती शहर,
बंक करी अति डंक।
बंक करी अति डंक करी
अत संक कुलि खल
सोच च्चकित भरोच्च च्चलीय
विमोच्चच्च खजल।
टठ्ठ ठ्ठई मन
कठ्ठ ठेके सई
रठ्ठ ठ्ठिल्लीय
रद्द द्दिसी दिसी
भद्द द्दभी भयी
रद्द द्दिल्लीय।
(सरजा शिवाजीने निर्भयपणे दिल्लीच्या सैन्याचे पारिपत्य करून आणि डंका वाजवून सूरत शहर लुटले. अशाप्रकारे डंका वाजवल्याने बिचाय्रा शत्रुंची फारच गाळण उडाली ते आश्चर्यचकित आणि चिंताग्रस्त होऊन नेत्रातून अश्रु वर्षाव करत भडोच शहराकडे पळाले. वारंवार घोकून त्यांनी निश्चयपूर्वक भडोचकडे पळण्याचा विचार ठरवला त्यामुळे दिल्ली दाबून बसली आणि चहूकडे तिचा अपमान झाला.)
८)
अलंकार - लाटानुप्रास / क्षेकानुप्रास
छंद - अमृतध्वनी
गतबल खान दलेर हुव
खान बहाद्दूर मुद्ध
सिव सरजा सल्हेरी डिडग,
क्रुद्ध धरी के युद्ध !
क्रुद्ध धरी के युद्ध करी
अरी अद्ध धरी धरी
मंड्ड ड्डरीतहू,
रुंड्ड ड्डकरत,
डुंडु डिड्गभरी !
खेदी द्दर भर,
छेदी दय्कारी,
मेदी द्दधी दल,
जंग्ग ग्गती सुनी,
रंग्ग गली,
अवरंग गतबल !
- कविराज भुषण
(सरजा शिवाजीने साल्हेर किल्ल्याजवळ जेव्हा रागारागाने युद्ध केले तेव्हा दिलेर खान स्तंभित आणि हतबल झाला.या युद्धात शत्रूकडील वीरांचा फडशा पडला तेव्हा शिरावेगळी झालेली धडं डरकाळया फोडू लागली आणि कदंभ इकादूं तिकडे पळू लागले. शत्रु सैन्याला मोर्चातून हूसकावून कापून काढले. त्यांचा मेद दह्याप्रमाणे घूसळला. या युद्धात झालेली दुर्गती औरंगजेबाने जेव्हा ऐकली तेव्हा तो निस्तेज झाला आणि त्याचं अवसान गळाले.)
९)
प्रेतिनी पिशाचर निशाचरी निशाचरी हू,
मिली मिली आपसमे गावत बधाई है।
भैरभूत प्रेतभूरी भूदर भयंकर से,
जुत्तजुत्त जोगनी जमाती जूरी आई है।
किलकी किलकी कै कुतूहल करती काली,
डिमक डिमक डमरू दिगंबर बजाई है।
सिवा पूछे सिवको समाजू आजू कहा चली,
काहू पे सिवा नरेश भृकुटी चढाई है।
(प्रेते, पिशाच्चे, निशाचर हे सगळे एकत्र जमून आनंदाने एकमेकांचे अभिनंदन करत जात आहेत. भैरव, भुतेखेते,६४ योगीनी यांच्या झुंडी जमू लागल्या आहेत. कालीसुद्धा किलकिल करीत वावरत आहे. शिव आनंदाने डमरू वाजवत आहेत. हे सर्व पाहून पार्वती महादेवास विचारत आहे की ,"आपले हे गण कुठं चालले आहेत ? आज शिवाजी राजाची वक्रदृष्टी कुणाकडे वळली आहे ? म्हणजे आज तिथे कत्तल होणार आणि शिवाजीच्या शत्रूंच्या प्रेतांवर या शिवगणांना ताव मारायला मिळणार आणि म्हणून आनंद व्यक्त करत ही सगळी चालली आहेत")
१०)
कुंद कहा, पयवृंद कहा
अरुचंद कहा, सरजा जस आगे?
भूषण भानु कृसानु कहाऽब
खुमन प्रताप महीतल पागे?
राम कहा, द्विजराम कहा,
बलराम कहा, रण मै अनुरागे?
बाज कहा, मृगराज कहा,
अतिसाहस मै सिवराज के आगे?
(कुंद, दूध, चंद्र यांची शुभ्रता शिवरायांच्या यशासमोर काय आहे ?
पृथ्वीवर पसरलेल्या शिवरायांच्या प्रखर प्रतापपुढे सूर्य अग्नी यांच्या तेजाचा काय पाड ?
युद्धप्रियतेमध्ये राम,परशुराम,बलराम हे देखील शिवरायांच्या मागे आहेत.
आणि साहस पाहिले असता बहिरी ससाणा व सिंह हे शिवरायांच्या पुढे तुच्छ आहेत.)
११)
शक्र जिमि सैल पर,
अर्क तमफैलपर,
बिघन की रैलपर,
लंबोदर देखीये !
राम दसकंधपर,
भीम जरासंधपर,
भूषण ज्यों सिंधुपर,
कुंभज विसेखिये !
हर ज्यों अनंगपर,
गरुड़ ज्यों भुजंगपर,
कौरव के अंग पर,
पारथ ज्यों पेखीये !
बाज ज्यों बिहंग पर,
सिंह ज्यों मतंग पर,
म्लेंच्छ चतुरंगपर,
शिवराज देखिये !!
शिवराज देखिये !! शिवराज देखिये !!
शिवराज देखिये !! शिवराज देखिये !!
- कविराज भुषण
{ज्याप्रमाणे इंद्र पर्वताचा , सूर्य अंधःकाराचा आणि विघ्नहर्ता गणराज विघ्नांचा नाश करतो
ज्याप्रमाणे प्रभु रामाने रवानाचा, भिमाने जरासंधाचा नाश केला, अगस्ति ऋषींनी समुद्राचा घोट घेतला
ज्याप्रमाणे महादेव मदनास जाळून भस्मसात करतात, गरुड़ सापांचा नाश करतो, एकटा अर्जुन कौरावांच्या वरचढ ठरतो
ज्याप्रमाणे पक्षी बहिरी ससाण्यास , हत्ती सिंहास पाहून भयभीत होतात
तद्वतच इस्लामी चतुरंग सैन्य शिवारयांच्या पराक्रमासमोर भयभीत होते.)
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